रात Poetry (page 84)
तारीख़ एक ख़ामोश ज़माना
असग़र नदीम सय्यद
मेरे दिल में जंगल है
असग़र नदीम सय्यद
छुट्टी का दिन
असग़र नदीम सय्यद
अपनी रात लय जाओ
असग़र नदीम सय्यद
जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं
असर अकबराबादी
जब तक वो शो'ला-रू मिरे पेश-ए-नज़र न था
असद जाफ़री
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
असद भोपाली
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
असद भोपाली
चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
असअ'द बदायुनी
वो एक नाम जो दरिया भी है किनारा भी
असअ'द बदायुनी
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
असअ'द बदायुनी
अजब दिन थे कि इन आँखों में कोई ख़्वाब रहता था
असअ'द बदायुनी
फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
आरज़ू लखनवी
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
हैं देस-बिदेस एक गुज़र और बसर में
आरज़ू लखनवी
भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो
आरज़ू लखनवी
आँख उन से मिरी मिली थी कभी
अरुण कुमार आर्य
मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था
अरशदुल क़ादरी
क़ल्ब-ओ-नज़र का सुकूँ और कहाँ दोस्तो
अरशद सिद्दीक़ी
न पयाम चाहते हैं न कलाम चाहते हैं
अरशद सिद्दीक़ी
लहू के साथ तबीअत में सनसनाती फिरे
अरशद मलिक
मैं ने उसी से हाथ मिलाया था और बस
अरशद महमूद अरशद
किस के सवाल पर ये दिल रोता है सारी सारी रात
अरशद लतीफ़
कोई नहीं है इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसाल के सिवा
अरशद लतीफ़
फिर चंद दिनों से वो हर शब ख़्वाबों में हमारे आते हैं
अरशद काकवी
बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
अरशद जमाल 'सारिम'
सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ
अरशद जमाल हश्मी
वो एक रात तो मुझ से अलग न सोएगा
अरशद अली ख़ान क़लक़
गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका
अरशद अली ख़ान क़लक़
आलम-ए-पीरी में क्या मू-ए-सियह का ए'तिबार
अरशद अली ख़ान क़लक़
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