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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 78 - Darsaal

रात Poetry (page 78)

उन्हें सवाल ही लगता है मेरा रोना भी

अज़ीज़ क़ैसी

तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम

अज़ीज़ क़ैसी

रात की रात पड़ाव का मेला कोच की धूल सवेरे

अज़ीज़ क़ैसी

पस-ए-तर्क-ए-इश्क़ भी उम्र-भर तरफ़-ए-मिज़ा पे तरी रही

अज़ीज़ क़ैसी

हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है

अज़ीज़ क़ैसी

चाँद तारे इक दिया और रात का कोमल बदन

अज़ीज़ नबील

उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह

अज़ीज़ नबील

हिज्र की रात काटने वाले

अज़ीज़ लखनवी

हाए क्या चीज़ थी जवानी भी

अज़ीज़ लखनवी

बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना

अज़ीज़ लखनवी

ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते

अज़ीज़ लखनवी

न हुई हम से शब बसर न हुई

अज़ीज़ लखनवी

हिज्र की रात याद आती है

अज़ीज़ लखनवी

बाज़ी-ए-इश्क़ मरे बैठे हैं

अज़ीज़ लखनवी

वफ़ा की रात कोई इत्तिफ़ाक़ थी लेकिन

अज़ीज़ हामिद मदनी

एक तरफ़ रू-ए-जानाँ था जलती आँख में एक तरफ़

अज़ीज़ हामिद मदनी

ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब

अज़ीज़ हामिद मदनी

वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या

अज़ीज़ हामिद मदनी

नावक-ए-ताज़ा दिल पर मारा जंग पुरानी जारी की

अज़ीज़ हामिद मदनी

ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली

अज़ीज़ फ़ैसल

जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर

अज़ीज़ एजाज़

जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर

अज़ीज़ एजाज़

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