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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 77 - Darsaal

रात Poetry (page 77)

मेरी हर बात पे बे-बात ख़फ़ा होते हो

बीएस जैन जौहर

मेरी हर बात पे बे-बात ख़फ़ा होते हो

बीएस जैन जौहर

जाने फिर तुम से मुलाक़ात कभी हो कि न हो

बीएस जैन जौहर

जाने फिर तुम से मुलाक़ात कभी हो कि न हो

बीएस जैन जौहर

तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना

अज़रा वहीद

ग़ुबार-ए-जाँ पस-ए-दीवार-ओ-दर समेटा है

अज़रा वहीद

ख़्वाब-जंगल

अज़रा नक़वी

हार-सिंगार

अज़रा नक़वी

कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में

अज़रा नक़वी

तुम हँसते क्यूँ हो

अज़रा अब्बास

जिला-वतन होने से पहले

अज़रा अब्बास

इस ज़िंदगी के बदले

अज़रा अब्बास

फ़ीमेल बुल-फ़ाइटर

अज़रा अब्बास

आवाज़ गिरती है

अज़रा अब्बास

प्यारा प्यारा घर अपना

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं

अज़्म शाकरी

तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम

अज़्म शाकरी

ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद

अज़्म शाकरी

मैं ने कल ख़्वाब में आइंदा को चलते देखा

अज़्म बहज़ाद

मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता

अज़्म बहज़ाद

जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी

अज़्म बहज़ाद

चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती

अज़लान शाह

हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं

अज़लान शाह

कमाल ये है कि दुनिया को कुछ पता न लगे

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

चाँदनी रात में

अज़ीज़ तमन्नाई

हर एक रंग में यूँ डूब कर निखरते रहे

अज़ीज़ तमन्नाई

दिल में वो दर्द उठा रात कि हम सो न सके

अज़ीज़ तमन्नाई

नाला-ए-बे-आसमाँ

अज़ीज़ क़ैसी

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

अल्फ़-ए-लैला की आख़िरी सुब्ह

अज़ीज़ क़ैसी

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