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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 72 - Darsaal

रात Poetry (page 72)

आसिफ़ुद्दौला का इमामबाड़ा लखनऊ

चकबस्त ब्रिज नारायण

मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

हम सोचते हैं रात में तारों को देख कर

चकबस्त ब्रिज नारायण

दिल के ज़ख़्मों की चुभन दीदा-ए-तर से पूछो

बुशरा हाश्मी

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे

बुशरा एजाज़

सुलगती रेत में इक चेहरा आब सा चमका

बृजेश अम्बर

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से

बिस्मिल सईदी

ये कह के देती जाती है तस्कीं शब-ए-फ़िराक़

बिस्मिल अज़ीमाबादी

निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी

कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

याद आता है समाँ मुझ को ख़ुद-आराई का

बिस्मिल इलाहाबादी

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है

बिशन नरायण दराबर

जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था

बिमल कृष्ण अश्क

एआद-ए-हिकायतें

बिमल कृष्ण अश्क

जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे

बिमल कृष्ण अश्क

जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था

बिमल कृष्ण अश्क

जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

बिमल कृष्ण अश्क

इतना अच्छा न अगर होता तो हम सा होता

बिमल कृष्ण अश्क

देता था जो साया वो शजर काट रहा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989

बिलाल अहमद

सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात

भवेश दिलशाद

बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

सूरज से उस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं

भारत भूषण पन्त

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