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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 40 - Darsaal

रात Poetry (page 40)

मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ

सहबा अख़्तर

ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे

सहबा अख़्तर

गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है

सहबा अख़्तर

हिसाब-ए-शब

सहर अंसारी

इक आस का धुँदला साया है इक पास का तपता सहरा है

सहर अंसारी

काम आई इश्क़ की दीवानगी कल रात को

सग़ीर अहमद सूफ़ी

कैसे जानूँ कि जहाँ ख़्वाब-नुमा होता है

सग़ीर मलाल

जिस को तय कर न सके आदमी सहरा है वही

सग़ीर मलाल

मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया

साग़र सिद्दीक़ी

लोग कहते हैं रात बीत चुकी

साग़र सिद्दीक़ी

आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़

साग़र सिद्दीक़ी

मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया

साग़र सिद्दीक़ी

महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया

साग़र सिद्दीक़ी

झूम कर गाओ मैं शराबी हैं

साग़र सिद्दीक़ी

काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है

साग़र निज़ामी

सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे

साग़र निज़ामी

गेसू को तिरे रुख़ से बहम होने न देंगे

साग़र निज़ामी

दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे

साग़र निज़ामी

हज़ार हम-सफ़रों में सफ़र अकेला है

साग़र मेहदी

इक अजनबी ख़याल में ख़ुद से जुदा रहा

साग़र मेहदी

ज़रूरत-ए-रिश्ता

साग़र ख़य्यामी

उल्टी गंगा

साग़र ख़य्यामी

टेम्परेरी जॉब

साग़र ख़य्यामी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

पड़ोसी की मुर्ग़ियाँ

साग़र ख़य्यामी

नवादिरात की दूकान

साग़र ख़य्यामी

गधों का मुशाएरे

साग़र ख़य्यामी

क्रिकेट मैच

साग़र ख़य्यामी

कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को

साग़र ख़य्यामी

तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं

सफ़ी लखनवी

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