रात Poetry (page 35)
ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ
साक़ी फ़ारुक़ी
वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन
साक़ी फ़ारुक़ी
वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
साक़ी फ़ारुक़ी
उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है
साक़ी फ़ारुक़ी
शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा
साक़ी फ़ारुक़ी
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
साक़ी फ़ारुक़ी
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
साक़ी फ़ारुक़ी
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
साक़ी फ़ारुक़ी
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
साक़ी फ़ारुक़ी
हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है
साक़ी फ़ारुक़ी
हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते
साक़ी फ़ारुक़ी
इक रात हम ऐसे मिलें जब ध्यान में साए न हों
साक़ी फ़ारुक़ी
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
साक़ी फ़ारुक़ी
बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
साक़ी फ़ारुक़ी
ज़िंदगी भर मुझे इस बात की हसरत ही रही
साक़ी अमरोहवी
सामने जब कोई भरपूर जवानी आए
साक़ी अमरोहवी
तुम्हारी याद को हम ने पलक पर यूँ सजा रक्खा
संजीव आर्या
दिल माँगे है मौसम फिर उम्मीदों का
समीना राजा
आसेब-सिफ़त ये मिरी तन्हाई अजब है
समीना राजा
वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई
समद अंसारी
उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर
समद अंसारी
पत्थर की नींद सोती है बस्ती जगाइए
समद अंसारी
लब-ए-तनूर
सलमान अंसारी
सूद-ओ-ज़ियाँ के बाब में हारे घड़ी घड़ी
सलमान अंसारी
मय-कशी छोड़ दी तौहीन-ए-हुनर कर आया
सलमान अंसारी
झाँकते रात के गरेबाँ से
सलमान अख़्तर
क्या दिखाता है ये सफ़र देखो
सलमान अख़्तर
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
सलमान अख़्तर
जागते में भी ख़्वाब देखे हैं
सलमान अख़्तर
हम जो पहले कहीं मिले होते
सलमान अख़्तर
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