रात Poetry (page 34)
किस शख़्स की तलाश में सर फोड़ती रही
सरमद सहबाई
कभी होंटों पे ऐसा लम्स अपनी आँख खोले
सरफ़राज़ ज़ाहिद
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
सरफ़राज़ नवाज़
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है
सरफ़राज़ नवाज़
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
सरफ़राज़ ख़ालिद
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
सरफ़राज़ ख़ालिद
मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
सरफ़राज़ ख़ालिद
शहर भर के आईनों पर ख़ाक डाली जाएगी
सरफ़राज़ दानिश
टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से
सरफ़राज़ आमिर
बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
सरदार सलीम
डराएगी हमें क्या हिज्र की अँधेरी रात
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
मैं जिन को ढूँडने निकला था गहरे ग़ारों में
सदार आसिफ़
लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
सदार आसिफ़
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
सरदार अंजुम
चलेगी न ऐ दिल कोई घात हरगिज़
सरस्वती सरन कैफ़
परिंदे की आँख खुल जाती है
सारा शगुफ़्ता
चराग़ जब मेरा कमरा नापता है
सारा शगुफ़्ता
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
साक़िब लखनवी
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
साक़िब लखनवी
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
साक़िब लखनवी
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
साक़िब लखनवी
हज़ार फूल लिए मौसम-ए-बहार आए
साक़िब लखनवी
ये क्या तिलिस्म है क्यूँ रात भर सिसकता हूँ
साक़ी फ़ारुक़ी
सुब्ह तक रात की ज़ंजीर पिघल जाएगी
साक़ी फ़ारुक़ी
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
साक़ी फ़ारुक़ी
मुहासबा
साक़ी फ़ारुक़ी
ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला
साक़ी फ़ारुक़ी
अजनबी
साक़ी फ़ारुक़ी
ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत
साक़ी फ़ारुक़ी
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