रात Poetry (page 33)
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
मोहम्मद रफ़ी सौदा
मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर
मोहम्मद रफ़ी सौदा
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
मोहम्मद रफ़ी सौदा
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
बेचैन जो रखती है तुम्हें चाह किसू की
मोहम्मद रफ़ी सौदा
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
इतनी सियाह-रात में इतनी सी रौशनी
सऊद उस्मानी
नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम
सऊद उस्मानी
एक किताब सिरहाने रख दी एक चराग़ सितारा किया
सऊद उस्मानी
दीवार पे रक्खा हुआ मिट्टी का दिया मैं
सऊद उस्मानी
आँखों में एक ख़्वाब पस-ए-ख़्वाब और है
सऊद उस्मानी
विसाल
सत्यपाल आनंद
आधा-अधूरा शख़्स
सत्यपाल आनंद
सब घरों में तो चराग़ों का उजाला होगा
सत्य नन्द जावा
जो दूर से हमें अक्सर ख़ुदा सा लगता है
सत्य नन्द जावा
ज़िंदगी के कटहरे में इक बे-ख़ता आदमी की तरह
सत्तार सय्यद
चमके दूरी में कुछ अक्स निशानों के
सत्तार सय्यद
जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों को रेज़ा रेज़ा करते हैं
सरवत ज़ेहरा
साए का इज़्तिराब
सरवत ज़ेहरा
आमरियत का क़सीदा
सरवत ज़ेहरा
तुम्हारी मुंतज़िर यूँ तो हज़ारों घर बनाती हूँ
सरवत ज़ेहरा
सुब्ह होते ही
सरवत हुसैन
''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''
सरवत हुसैन
दुश्वार दिन के किनारे
सरवत हुसैन
मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
सरवत हुसैन
जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
सरवत हुसैन
गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
सरवत हुसैन
सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर
सरमद सहबाई
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