रात Poetry (page 23)
रखना है तो फूलों को तू रख ले निगाहों में
शमीम करहानी
पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है
शमीम करहानी
निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से
शमीम करहानी
निगार-ए-मह-वश ओ महबूब-ए-लाला-रू की तरह
शमीम करहानी
जुनूँ तो है मगर आओ जुनूँ में खो जाएँ
शमीम करहानी
जश्न-ए-हयात हो चुका जश्न-ए-ममात और है
शमीम करहानी
हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले
शमीम करहानी
दर्द-शनास दिल नहीं जल्वा-तलब नज़र नहीं
शमीम करहानी
चमन लहक के रह गया घटा मचल के रह गई
शमीम करहानी
चमन चमन जो ये सुब्ह-ए-बहार की ज़ौ है
शमीम करहानी
रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए
शमीम जयपुरी
वो एक शोर सा ज़िंदाँ में रात-भर क्या था
शमीम हनफ़ी
बंद कर के खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख
शमीम हनफ़ी
ज़ेर-ए-ज़मीं दबी हुई ख़ाक को आसाँ कहो
शमीम हनफ़ी
वो एक शोर सा ज़िंदाँ में रात भर क्या था
शमीम हनफ़ी
तुम्हारे चाक पर ऐ कूज़ा-गर लगता है डर हम को
शमीम हनफ़ी
तीरगी चाँद को इनआम-ए-वफ़ा देती है
शमीम हनफ़ी
तिलिस्म है कि तमाशा है काएनात उस की
शमीम हनफ़ी
शोला शोला थी हवा शीशा-ए-शब से पूछो
शमीम हनफ़ी
फिर लौट के इस बज़्म में आने के नहीं हैं
शमीम हनफ़ी
कभी सहरा में रहते हैं कभी पानी में रहते हैं
शमीम हनफ़ी
हिज्र का क़िस्सा बहुत लम्बा नहीं बस रात भर है
शमीम हनफ़ी
बंद कर ले खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख
शमीम हनफ़ी
बंद कर के खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख
शमीम हनफ़ी
अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है
शमीम हनफ़ी
आना उसी का बज़्म से जाना उसी का है
शमीम हनफ़ी
डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ
शमीम फ़ारूक़ी
अँधेरी शब है कहाँ रूठ कर वो जाएगा
शमीम फ़ारूक़ी
रुकने का अब नाम न ले है राही चलता जाए है
शमीम अनवर
किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं
शमीम अब्बास
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