रात Poetry (page 22)
बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो
शारिक़ कैफ़ी
यक़ीन के ख़िलाफ़
शारिक़ कैफ़ी
कुतिया
शारिक़ कैफ़ी
ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो
शारिक़ कैफ़ी
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने
शारिक़ कैफ़ी
जब आफ़्ताब की आग इस ज़मीं को चाटेगी
शारिक़ जमाल
तवील रात भी आख़िर को ख़त्म होती है
शरीफ़ कुंजाही
पस्पाई
शरीफ़ कुंजाही
तलाश जिन की है वो दिन ज़रूर आएँगे
शरीफ़ कुंजाही
अपनी आँखों पर वो नींदों की रिदा ओढ़े हुए
शारिब मौरान्वी
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
शरफ़ मुजद्दिदी
बाद-ए-सरसर की करामात से पहले क्या था
शनावर इस्हाक़
अँधेरी शब से एक ला-हासिल
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
कनार-ए-बहर है देखूँगा मौज-ए-आब में साँप
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
दिन-भर की दौड़ रात के औहाम वसवसे
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
अब मुझ से ये रात तय न होगी
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
किसी की चाह में दिल को जलाना ठीक है क्या
शम्स तबरेज़ी
नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे
शमीम तारिक़
किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है
शमीम तारिक़
सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला
शमीम रविश
दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो
शमीम रविश
मंज़र यूँ था
शमीम क़ासमी
फ़ज़ा-ए-नम में सदाओं का शोर हो जाए
शमीम क़ासमी
रौशनी तेज़ करो
शमीम करहानी
राहगुज़र
शमीम करहानी
वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न
शमीम करहानी
शराब ओ शेर के साँचे में ढल के आई है
शमीम करहानी
शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है
शमीम करहानी
सहर को दे के नई निकहत-ए-हयात गई
शमीम करहानी
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