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Collection: रात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 17 - Darsaal

रात Poetry (page 17)

अब तक लहू का ज़ाइक़ा ख़ंजर पे नक़्श है

सुल्तान अख़्तर

कोई दिया किसी चौखट पे अब न जलने का

सुलेमान ख़ुमार

कल रात मेरे साथ अजब हादिसा हुआ

सुलेमान ख़ुमार

कचोके दिल को लगाता हुआ सा कुछ तो है

सुलेमान ख़ुमार

तुम्हें क्या?

सुलैमान अरीब

तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ

सुलैमान अरीब

निज़ाम-ए-शम्स-ओ-क़मर कितने दस्त-ए-ख़ाक में हैं

सुलैमान अरीब

नहीं जो तेरी ख़ुशी लब पे क्यूँ हँसी आए

सुलैमान अरीब

भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने

सुलैमान अरीब

बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात

सुहैल काकोरवी

पहाड़ जैसे दिनों को तो काट लूँ लेकिन

सुहैल अख़्तर

ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से

सुहैल अख़्तर

जब शाम बढ़ी रात का चाक़ू निकल आया

सुहैल अहमद ज़ैदी

तंहाई

सूफ़ी तबस्सुम

मैं आ रहा हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात

सूफ़ी तबस्सुम

उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है

सूफ़ी तबस्सुम

सायों से लिपट रहे थे साए

सूफ़ी तबस्सुम

कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा

सूफ़ी तबस्सुम

ख़ामोशी कलाम हो गई है

सूफ़ी तबस्सुम

हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है

सूफ़ी तबस्सुम

बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी

सूफ़ी तबस्सुम

ऐसे भी थे कुछ हालात

सूफ़ी तबस्सुम

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

सुदर्शन फ़ाकिर

कब करोगे हमारा इस्तिक़बाल

सुबोध लाल साक़ी

बढ़ा जो दर्द-ए-जिगर ग़म से दोस्ती कर ली

सुभाष पाठक ज़िया

कभी कभी मुझे इतना भी तू निभाया कर

सोनरूपा विशाल

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

सोहन राही

नुमूद उन की भी दौर-ए-सुबू में थी कल रात

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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