रात Poetry (page 14)
ये एक बात समझने में रात हो गई है
तहज़ीब हाफ़ी
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
ये एक बात समझने में रात हो गई है
तहज़ीब हाफ़ी
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
तहज़ीब हाफ़ी
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
तहज़ीब हाफ़ी
गोशे बदल बदल के हर इक रात काट दी
ताहिर फ़राज़
अजीब हम हैं सबब के बग़ैर चाहते हैं
ताहिर फ़राज़
इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग
तफ़ज़ील अहमद
हर अदा तुंद और नबात उस की
ताबिश सिद्दीक़ी
उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का
ताबिश कमाल
शायरों का जब्र
ताबिश कमाल
क़िस्सा-ए-शब
ताबिश कमाल
कहीं से तुम मुझे आवाज़ देती हो
ताबिश कमाल
एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा
ताबिश कमाल
देव-मालाएँ सच्ची होती हैं
ताबिश कमाल
क्या कहूँ वो किधर नहीं रहता
ताबिश कमाल
अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
ताबिश कमाल
वो साहिल-ए-शब पे सो गई थी
तबस्सुम काश्मीरी
नदामत ही नदामत
तबस्सुम काश्मीरी
एक लम्बी काफ़िर लड़की
तबस्सुम काश्मीरी
वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
ताबाँ अब्दुल हई
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
ताबाँ अब्दुल हई
शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू
ताबाँ अब्दुल हई
क़फ़स से छूटने की कब हवस है
ताबाँ अब्दुल हई
ख़ूबाँ जो पहनते हैं निपट तंग चोलियाँ
ताबाँ अब्दुल हई
खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस
ताबाँ अब्दुल हई
देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह
ताबाँ अब्दुल हई
दिल के सहरा में बड़े ज़ोर का बादल बरसा
ताब असलम
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