रात Poetry (page 12)
एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले
उमैर नजमी
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
त्रिपुरारि
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
त्रिपुरारि
जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी
त्रिपुरारि
काविशों से अमाँ मिले न मिले
तिलोकचंद महरूम
वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे
तौसीफ़ तबस्सुम
मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ
तौसीफ़ तबस्सुम
क्या बताऊँ कि है किस ज़ुल्फ़ का सौदा मुझ को
तौसीफ़ तबस्सुम
इस पार जहान-ए-रफ़्तगाँ है
तौसीफ़ तबस्सुम
याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
तौक़ीर तक़ी
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
तौक़ीर तक़ी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
तौक़ीर तक़ी
आज की रात मुझे होश में रहने दो अभी
तौक़ीर अहमद
थकन की तल्ख़ियों को अरमुग़ाँ अनमोल देती है
ताैफ़ीक़ साग़र
फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली
तसनीम फ़ारूक़ी
रहने वालों को तिरे कूचे के ये क्या हो गया
मीर तस्कीन देहलवी
क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में
मीर तस्कीन देहलवी
लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो
तासीर सिद्दीक़ी
अपने दम से गुज़र औक़ात नहीं करता मैं
तरकश प्रदीप
आज इस वक़्त वो जब याद आया
तारिक़ राशीद दरवेश
फिर आज भूक हमारा शिकार कर लेगी
तारिक़ क़मर
सुकूत-ए-शब में
तारिक़ क़मर
जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात
तारिक़ क़मर
बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए
तारिक़ क़मर
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
तारिक़ नईम
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था
तारिक़ नईम
इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था
तारिक़ नईम
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
तारिक़ नईम
लब-ए-ख़मोश मिरा बात से ज़ियादा है
तारिक़ हाश्मी
वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं
तारिक़ बट
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