रात Poetry (page 102)
जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच
अफ़रोज़ आलम
हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है
अफ़रोज़ आलम
मेरे जुनून-ए-शौक़ को इतनी सी काएनात बस
अफ़ीफ़ सिराज
बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी
अफ़ीफ़ सिराज
जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है
अादिल रशीद
तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
आदिल मंसूरी
फिर बालों में रात हुई
आदिल मंसूरी
नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
आदिल मंसूरी
तिलिस्मी ग़ार का दरवाज़ा
आदिल मंसूरी
सियाह चाँद के टुकड़ों को मैं चबा जाऊँ
आदिल मंसूरी
सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल
आदिल मंसूरी
लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
आदिल मंसूरी
लफ़्ज़ की छाँव में
आदिल मंसूरी
चल निकलो
आदिल मंसूरी
सोए हुए पलंग के साए जगा गया
आदिल मंसूरी
सड़कों पर सूरज उतरा
आदिल मंसूरी
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से
आदिल मंसूरी
जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा
आदिल मंसूरी
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
आदिल मंसूरी
हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा
आदिल मंसूरी
होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था
आदिल मंसूरी
हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर
आदिल मंसूरी
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो
आदिल मंसूरी
घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में
आदिल मंसूरी
गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से
आदिल मंसूरी
दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार
आदिल मंसूरी
चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को
आदिल मंसूरी
सुकून-ए-दिल फ़ना है और मैं हूँ
आदिल हयात
आने वाला है कोई मेहमान क्या
आदिल हयात
तमाम उम्र की तन्हाई की सज़ा दे कर
अदीम हाशमी
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