जजमेंट डे Poetry (page 16)
दिल चुरा कर नज़र चुराई है
दाग़ देहलवी
देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई
दाग़ देहलवी
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
दाग़ देहलवी
अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम
दाग़ देहलवी
जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता है
चरख़ चिन्योटी
दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
आठ पहर है ये ही ग़म
बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद
बे-रुख़ी ने उस की कैसा ये इशारा कर दिया
बबल्स होरा सबा
अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
बूम मेरठी
ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ
बिर्ज लाल रअना
लाख टकराते फिरें हम सर दर-ओ-दीवार से
भारत भूषण पन्त
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
बेख़ुद देहलवी
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी
बेख़ुद देहलवी
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
बेख़ुद देहलवी
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
बेख़ुद देहलवी
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
बेख़ुद देहलवी
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
बेदम शाह वारसी
दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
बयान मेरठी
ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
बयान मेरठी
सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ
बयान मेरठी
चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का
बयान मेरठी
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
बयान मेरठी
चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है
बशीर महताब
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
बाक़र मेहदी
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
बख़्श लाइलपूरी
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
ज़फ़र
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के
ज़फ़र
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