कदम Poetry (page 16)
ऐ मेरे सर-सब्ज़ ख़ुदा
सारा शगुफ़्ता
ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए
साक़ी फ़ारुक़ी
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
साक़ी फ़ारुक़ी
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
साक़ी फ़ारुक़ी
इक रात हम ऐसे मिलें जब ध्यान में साए न हों
साक़ी फ़ारुक़ी
ज़मीं कुछ फ़लक को बताने लगी है
संदीप कोल नादिम
तीसरी बारिश से पहले
समीना राजा
अपनी लौ में कोई डूबा ही नहीं
समद अंसारी
बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ
सालिक लखनवी
कुछ तग़य्युर मिरे अहवाल-ए-परेशाँ में नहीं
सालिक देहलवी
आज रक्खे हैं क़दम उस ने मिरी चौखट पर
सलीम सिद्दीक़ी
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
सूरज ज़मीं की कोख से बाहर भी आएगा
सलीम शाहिद
घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न हो
सलीम शाहिद
वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
सलीम कौसर
वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
सलीम कौसर
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
सलीम कौसर
हर क़दम आगही की सम्त गया
सलीम फ़िगार
क्या लुत्फ़ हवाओं के सफ़र में नहीं रक्खा
सलीम फ़राज़
एक तो दुनिया का कारोबार है
सलीम फ़राज़
दश्त ओ दर ख़ैर मनाएँ कि अभी वहशत में
सलीम अहमद
नींद से पहले
सलीम अहमद
लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा
सलीम अहमद
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
सलीम अहमद
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
सलीम अहमद
था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआमला
सलाहुद्दीन परवेज़
हर्फ़-ए-तहज्जी सीख रहा हूँ
शख़ावत शमीम
ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का
सज्जाद बाक़र रिज़वी
वो माह-वश है ज़मीं पर नज़र झुकाए हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह
सज्जाद बाक़र रिज़वी
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