कदम Poetry (page 12)

तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस कूँ पी का ख़याल होता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जी तरसता है यार की ख़ातिर

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अपने ज़ौक़-ए-दीद को अब कारगर पाता हूँ मैं

शैदा अम्बालवी

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद

शहज़ाद अहमद

हम दो क़दम भी चल न सके ख़ाक-ए-पा हुए

शहज़ाद अहमद

वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो

शहज़ाद अहमद

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे

शहज़ाद अहमद

जब आफ़्ताब न निकला तो रौशनी के लिए

शहज़ाद अहमद

दिल से ये कह रहा हूँ ज़रा और देख ले

शहज़ाद अहमद

बाग़-ए-बहिश्त के मकीं कहते हैं मर्हबा मुझे

शहज़ाद अहमद

अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले

शहज़ाद अहमद

ला-ज़वाल होने का

शहरयार

ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है

शहरयार

ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है

शहरयार

कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल

शहरयार

हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था

शहरयार

अगली रुत की नमाज़

शहनाज़ नबी

बुझे बुझे से चराग़ों से सिलसिला पाया

शाहिद माहुली

शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले

शाहिद इश्क़ी

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