परेशां Poetry (page 12)
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
दिल में हमारे अब कोई अरमाँ नहीं रहा
अज़ीज़ वारसी
हक़ारत से न देखो साकिनान-ए-ख़ाक की बस्ती
अज़ीज़ लखनवी
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
अज़ीज़ लखनवी
दिल आया इस तरह आख़िर फ़रेब-ए-साज़-ओ-सामाँ में
अज़ीज़ लखनवी
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
अज़ीज़ लखनवी
कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल
अज़ीज़ हामिद मदनी
करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी
अज़ीज़ हामिद मदनी
एक ही शहर में रहते बस्ते काले कोसों दूर रहा
अज़ीज़ हामिद मदनी
रह गया दीदा-ए-पुर-आब का सामाँ हो कर
अज़हर नक़वी
गुज़रे हुए लम्हात को अब ढूँड रहा हूँ
अज़हर हाश्मी
ख़ुद से अब मुझ को जुदा यूँ ही मिरी जाँ रखना
अज़ीज़ परीहारी
अफ़्साना-ए-हयात-ए-परेशाँ के साथ साथ
अज़ीम मुर्तज़ा
आइना है ख़याल की हैरत
औरंगज़ेब
ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी
अतहर नफ़ीस
कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शायर-ए-आज़म
असरार जामई
बालीदगी-ए-ज़र्फ़ पे दिखलाए गए लोग
असरा रिज़वी
हंगामा-ए-हस्ती से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
असलम फ़र्रुख़ी
आ जाओ अब तो ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
असग़र गोंडवी
मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाँ नहीं देखा
असग़र गोंडवी
तुम्हारी फ़ुर्क़त में मेरी आँखों से ख़ूँ के आँसू टपक रहे हैं
असर सहबाई
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
असर लखनवी
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
असर लखनवी
अज़ल के दिन जिन्हें देखा था बज़्म-ए-हुस्न-ए-पिन्हाँ में
आरज़ू सहारनपुरी
कभी जो उस की तमन्ना ज़रा बिफर जाए
अरशद कमाल
रुख़ तह-ए-ज़ुल्फ़ है और ज़ुल्फ़ परेशाँ सर पर
अरशद अली ख़ान क़लक़
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा
अरशद अब्दुल हमीद
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