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Collection: फूल Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 25 - Darsaal

फूल Poetry (page 25)

बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी

रशीद लखनवी

ये किस को जाग जाग के तारों की छाँव में

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया

रशीद कामिल

राह में क़दमों से जो लिपटी सफ़र की धूल थी

रशीद अफ़रोज़

है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है

रसा चुग़ताई

सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन

रऊफ़ अमीर

इस उजड़े शहर के आसार तक नहीं पहुँचे

रऊफ़ अमीर

हवा की चादर-ए-सद-चाक ओढ़े जा रहे हैं

रऊफ़ अमीर

कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को

राना आमिर लियाक़त

जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ

रमेश कँवल

अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ

राम रियाज़

किस ने कहा था शहर में आ कर आँख लड़ाओ दीवारों से

राम प्रकाश राही

शाम-ए-अवध ने ज़ुल्फ़ में गूँधे नहीं हैं फूल

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

नवाज़ा है मुझे पत्थर से जिस ने

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

वो जो होती थी फ़ज़ा-ए-दास्तानी ले गया

रख़शां हाशमी

है वही मंज़र-ए-ख़ूँ-रंग जहाँ तक देखूँ

रख़शां हाशमी

आँख ने फिर अज़ाब देखा है

रख़शां हाशमी

कोई ख़्वाब ख़्वाब सा फ़ासला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दोस्तो क्या है तकल्लुफ़ मुझे सर देने में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मुरझा चुका है फिर भी ये दिल फूल ही तो है

राजेन्द्र कृष्ण

यूँ हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए

राजेन्द्र कृष्ण

पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर

राजेन्द्र नाथ रहबर

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