फूल Poetry (page 14)
शहर-ए-जाँ में इज़तिराब-ए-सोज़-ए-फ़न देखेगा कौन
शमीम आज़र
तन्हाई का ग़म ढोएँ और रो रो जी हलकान करें
शाकिर ख़लीक़
रोज़ शाम होती है रोज़ हम सँवरते हैं
शकीला बानो
संग मजनूँ पे लड़कपन में उठाया क्यूँ था
शकील शम्सी
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
शकील जमाली
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई
शकील जमाली
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
शकील जमाली
आवाज़ों के जाल बिछाए जाते हैं
शकील ग्वालिआरी
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
शकील बदायुनी
ज़ौक़-ए-गुनाह ओ अज़्म-ए-पशेमाँ लिए हुए
शकील बदायुनी
लुत्फ़-ए-निगाह-ए-नाज़ की तोहमत उठाए कौन
शकील बदायुनी
जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते
शकील बदायुनी
ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर
शकील बदायुनी
दिल लज़्ज़त-ए-निगाह करम पा के रह गया
शकील बदायुनी
अब तक शिकायतें हैं दिल-ए-बद-नसीब से
शकील बदायुनी
हुआ न ख़त्म अज़ाबों का सिलसिला अब तक
शकील आज़मी
धुआँ धुआँ है फ़ज़ा रौशनी बहुत कम है
शकील आज़मी
अकेले रहने की ख़ुद ही सज़ा क़ुबूल की है
शकील आज़मी
वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था
शकेब जलाली
मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख
शकेब जलाली
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
शकेब जलाली
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
शकेब जलाली
गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था
शकेब जलाली
दुनिया वालों ने चाहत का मुझ को सिला अनमोल दिया
शकेब जलाली
दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ
शकेब जलाली
दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है
शकेब जलाली
रख़्त-ए-सफ़र
शाइस्ता मुफ़्ती
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी
शहज़ाद क़ैस
मिरा नहीं तो वो अपना ही कुछ ख़याल करे
शहज़ाद नय्यर
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