फूल Poetry (page 13)
ज़ुल्फ़-ए-दराज़ से ये नुमायाँ है ग़ालिबन
शौक़ बहराइची
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
शौकत परदेसी
ये हवेली गिर रही है
शरवण कुमार वर्मा
जैसे ये मेज़ मिट्टी का हाथी ये फूल
शारिक़ कैफ़ी
एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए
शारिक़ कैफ़ी
दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से
शारिक़ जमाल
तू समझता है तो ख़ुद तेरी नज़र गहरी नहीं
शरीफ़ कुंजाही
अँधेरी शब से एक ला-हासिल
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
महफ़िल का नूर मरजा-ए-अग़्यार कौन है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है
शमीम तारिक़
दीवार की सूरत था कभी दर की तरह था
शमीम रविश
फ़ज़ा-ए-नम में सदाओं का शोर हो जाए
शमीम क़ासमी
बे-ख़बर फूल को भी खींच के पत्थर पे न मार
शमीम करहानी
फ़रेब-ए-नज़र
शमीम करहानी
ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ
शमीम करहानी
याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई
शमीम करहानी
वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न
शमीम करहानी
समझे है मफ़्हूम नज़र का दिल का इशारा जाने है
शमीम करहानी
सहर को दे के नई निकहत-ए-हयात गई
शमीम करहानी
निगार-ए-मह-वश ओ महबूब-ए-लाला-रू की तरह
शमीम करहानी
हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले
शमीम करहानी
गुलों पे साया-ए-ग़म-हा-ए-रोज़गार मिले
शमीम करहानी
ग़म दो आलम का जो मिलता है तो ग़म होता है
शमीम करहानी
बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में
शमीम जयपुरी
सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा
शमीम हनफ़ी
अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है
शमीम हनफ़ी
आना उसी का बज़्म से जाना उसी का है
शमीम हनफ़ी
बहुत घुटन है बहुत इज़्तिराब है मौला
शमीम फ़ारूक़ी
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