पत्थर Poetry (page 31)
दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए
अज़ीज़ क़ैसी
मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ
अज़ीज़ नबील
आतिश-ए-ख़ामोश
अज़ीज़ लखनवी
मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
लहू से उठ के घटाओं के दिल बरसते हैं
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
आप भी रेत का मल्बूस पहन कर देखें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
किस लिए ख़ुद को समझता है वो पत्थर की लकीर
अज़ीम हैदर सय्यद
कौन वाँ जुब्बा-ओ-दस्तार में आ सकता है
अज़ीम हैदर सय्यद
मिरी दुनिया अकेली हो रही है
अज़हर नैयर
इस को कोई ग़म नहीं है जिस का घर पत्थर का है
अज़हर नैयर
चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
अज़हर इनायती
अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ
अज़हर इनायती
वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था
अज़हर इनायती
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
अज़हर इनायती
इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए
अज़हर इनायती
अभी बिछड़ा है वो कुछ रोज़ तो याद आएगा
अज़हर इनायती
मिरे वजूद का मेहवर चमकता रहता है
अज़हर हाश्मी
दर-ओ-दीवार से डर लग रहा था
अज़हर अदीब
हाथ पत्थर से हो गए मानूस
अज़हर अब्बास
सहरा का कोई फूल मोअ'त्तर तो नहीं था
अज़ीम कुरेशी
पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे
आज़ाद गुरदासपुरी
फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख
आज़ाद गुलाटी
साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए
आज़ाद गुलाटी
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है
आज़ाद गुलाटी
मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ
आज़ाद गुलाटी
मुझ से बे-ज़ारो न यूँ संग से मारो मुझ को
अतीक़ुल्लाह
जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ
अतीक़ुल्लाह
मैं इंसान-ए-नौअ' हूँ मैं ईसा-नफ़स हूँ
आतिफ़ ख़ान
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