पत्थर Poetry (page 29)
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अब तो इतनी बार हम रस्ते में ठोकर खा चुके
भारत भूषण पन्त
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
भारत भूषण पन्त
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
भारत भूषण पन्त
जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं
भारत भूषण पन्त
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
बेख़ुद देहलवी
यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला
बेकल उत्साही
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
बेकल उत्साही
उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए
बेदम शाह वारसी
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
बयान मेरठी
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे
बशीर फ़ारूक़ी
वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है
बशीर फ़ारूक़
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
बशीर बद्र
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
बशीर बद्र
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
बशीर बद्र
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
बशीर बद्र
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
बशीर बद्र
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
बशीर बद्र
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
बशीर बद्र
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
बशीर बद्र
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
बशीर बद्र
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
बशीर बद्र
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
बशीर बद्र
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
बशीर बद्र
अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
बशीर बद्र
हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल
बशीर मुंज़िर
या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए
बशीर अहमद बशीर
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर
दूर तक चारों तरफ़ मेरे सिवा कोई न था
बशीर अहमद बशीर
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