पत्थर Poetry (page 14)
दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं
सालिम सलीम
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
सालिक लखनवी
उम्र भर जिस के लिए पेट से बाँधे पत्थर
सलीम सिद्दीक़ी
तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ
सलीम सिद्दीक़ी
शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को
सलीम सिद्दीक़ी
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
रंग ताबीर का टूटे हुए ख़्वाबों में नहीं
सलीम शहज़ाद
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर
सलीम शहज़ाद
उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो
सलीम शाहिद
सूरज ज़मीं की कोख से बाहर भी आएगा
सलीम शाहिद
सब थकन आँख में सिमट जाए
सलीम शाहिद
क़ाइल करूँ किस बात से मैं तुझ को सितमगर
सलीम शाहिद
मेरे एहसास की रग रग में समाने वाले
सलीम शाहिद
मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर
सलीम शाहिद
ख़्वाहिश को अपने दर्द के अंदर समेट ले
सलीम शाहिद
दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया
सलीम शाहिद
अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई
सलीम शाहिद
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम सरफ़राज़
तिरी तलाश में गुज़रे कई ज़माने मुझे
सलीम काशीर
चमकती ओस की सूरत गुलों की आरज़ू होना
सलीम फ़िगार
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम फ़राज़
ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ
सलीम अहमद
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
सलीम अहमद
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
सलीम अहमद
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
सलीम अहमद
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
सलीम अहमद
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
सलीम अहमद
लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा
सलीम अहमद
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
सलीम अहमद
कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं
सलीम अहमद
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