पत्थर Poetry (page 13)
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
सरवर आलम राज़
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
सरवत हुसैन
दस से ऊपर
सरवत हुसैन
रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी
सरवत हुसैन
पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर
सरवत हुसैन
जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला
सरवत हुसैन
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
सरवत हुसैन
सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर
सरमद सहबाई
ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
सरफ़राज़ ज़ाहिद
टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से
सरफ़राज़ आमिर
उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
रहता है कब इक रविश पर आसमाँ
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
सदार आसिफ़
साए की ख़ामोशी
सारा शगुफ़्ता
आधा कमरा
सारा शगुफ़्ता
पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू
साक़ी फ़ारुक़ी
मरता लम्हा
साक़ी फ़ारुक़ी
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
साक़ी फ़ारुक़ी
बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
हम तो यूँ उलझे कि भूले आप ही अपना ख़याल
समीना राजा
रौशनी तक रौशनी का रास्ता कह लीजिए
समद अंसारी
हक़-नवाई को ज़माने की ज़बाँ कौन करे
समद अंसारी
बुझते सूरज के शरारे नूर बरसाने लगे
समद अंसारी
आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था
समद अंसारी
आहटों से दिमाग़ जलता है
समद अंसारी
यूँ भला तुम पर सजा कब आइने में देखना
सलमान सिद्दीक़ी
जब शाम शहर में आती है
सलमान सईद
शिकार हो गया वो ख़ुद ही इस ज़माने का
सलमा शाहीन
ज़ब्त की हद से गुज़र कर ख़ार तो होना ही था
सलीम शुजाअ अंसारी
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