पत्थर Poetry (page 10)
पादाश
शकेब जलाली
काला पत्थर
शकेब जलाली
मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से
शकेब जलाली
कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई
शकेब जलाली
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
शकेब जलाली
आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे
शकेब जलाली
ख़ूनीं गुलाब सब्ज़ सनोबर है सामने
शकेब अयाज़
बे-आब-ओ-बे-ग्याह हुआ उस को छोड़ कर
शकेब अयाज़
आज लगता है समुंदर में है तुग़्यानी सी
शाइस्ता मुफ़्ती
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ज़बानें थक चुकीं पत्थर हुए कान
शहज़ाद अहमद
शायद इसी बाइस हुईं पत्थर मिरी आँखें
शहज़ाद अहमद
अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं
शहज़ाद अहमद
अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ
शहज़ाद अहमद
मैं और तू
शहज़ाद अहमद
जीने मरने के दरमियान एक साअत
शहज़ाद अहमद
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है
शहज़ाद अहमद
तेरे घर की भी वही दीवार थी दरवाज़ा था
शहज़ाद अहमद
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
शहज़ाद अहमद
न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ
शहज़ाद अहमद
कमरों में छुपने के दिन हैं और न बरहना रातें हैं
शहज़ाद अहमद
ज़िंदा रहने का ये एहसास
शहरयार
शहर-ए-जुनूँ में कल तलक जो भी था सब बदल गया
शहरयार
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
शहरयार
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
शहरयार
ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए
शहनाज़ नूर
हम पत्थर नहीं हैं
शहनाज़ नबी
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