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Collection: पेड़ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 13 - Darsaal

पेड़ Poetry (page 13)

दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है

अहमद हमदानी

दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है

अहमद अता

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

गुम-सुम हवा के पेड़ से लिपटा हुआ हूँ में

अफ़ज़ल मिनहास

दीवारों में दर होता तो अच्छा था

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

ये पेड़ ये पहाड़ ज़मीं की उमंग हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

गोश्त की सड़कों पर

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे

अदीम हाशमी

पोस्टर पर एक ख़बर

अबरार आज़मी

ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है

आबिद मलिक

ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो

आबिद मलिक

शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है

आबिद मलिक

इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ

आबिद मलिक

जो शख़्स तुझ को फ़रिश्ता दिखाई देता है

आबिद आलमी

वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था

अब्दुस्समद ’तपिश’

आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था

अब्दुस्समद ’तपिश’

चुप

अब्दुर्रशीद

याद कर कर के उसे वक़्त गुज़ारा जाए

अब्बास ताबिश

साँस के शोर को झंकार न समझा जाए

अब्बास ताबिश

इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी

अब्बास ताबिश

हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है

अब्बास ताबिश

उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़

आसी फ़ाईकी

कितने ही पेड़ ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से उजड़ गए

आनिस मुईन

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए

आनन्द सरूप अंजुम

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