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Collection: उठो Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Darsaal

उठो Poetry

मकान ख़ाली है

अज़ीज़ क़ैसी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

रोए भगत कबीर

हबीब जालिब

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

इश्क़-आबाद की शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक है फिर भी है ख़ुदा सब का

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बादा-कश हूँ न पारसा हूँ मैं

ज़ुहैर कंजाही

सियाह पट्टी

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया

ज़ुबैर अली ताबिश

तुलूअ'

ज़िया जालंधरी

इंसाफ़

ज़ेहरा निगाह

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते

ज़ेहरा निगाह

रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी

ज़ेब ग़ौरी

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे

ज़हीर काश्मीरी

कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़

ज़हीर देहलवी

हाथ से हैहात क्या जाता रहा

ज़हीर देहलवी

ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा

ज़हीर देहलवी

सिमटने की हवस क्या थी बिखरना किस लिए है

ज़फ़र इक़बाल

बीनाई से बाहर कभी अंदर मुझे देखे

ज़फ़र इक़बाल

थक के पत्थर की तरह बैठा हूँ रस्ते में 'ज़फ़र'

यूसुफ़ ज़फ़र

बे-तलब एक क़दम घर से न बाहर जाऊँ

यूसुफ़ ज़फ़र

वतन

यूसुफ़ राहत

तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ

यूसुफ़ आज़मी

आशिक़ी के आश्कारे हो चुके

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

नसीम-ए-सुब्ह यूँ ले कर तिरा पैग़ाम आती है

वासिफ़ देहलवी

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