उम्र Poetry (page 26)
ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर
साबिर वसीम
राह में शहर-ए-तरब याद आया
साबिर वसीम
करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में
साबिर वसीम
इक आग देखता था और जल रहा था मैं
साबिर वसीम
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनी
साबिर
हमारी बेचैनी उस की पलकें भिगो गई है
साबिर
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
साबिर
कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए
सबा जायसी
उस का वादा ता-क़यामत कम से कम
सबा अकबराबादी
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
सबा अकबराबादी
कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं
सबा अफ़ग़ानी
तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
सादुल्लाह शाह
किसी भी वहम को ख़ुद पर सवार मत करना
सादुल्लाह शाह
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
एस ए मेहदी
गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बे-ख़बर न था
रोहित सोनी ‘ताबिश’
इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
रियाज़ ख़ैराबादी
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
रियाज़ ख़ैराबादी
न आया हमें इश्क़ करना न आया
रियाज़ ख़ैराबादी
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
रियाज़ ख़ैराबादी
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
रियाज़ ख़ैराबादी
आईना देखते ही वो दीवाना हो गया
रियाज़ ख़ैराबादी
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
रिन्द लखनवी
ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
रिन्द लखनवी
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
रिन्द लखनवी
इक परी का फिर मुझे शैदा किया
रिन्द लखनवी
दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता
रिन्द लखनवी
ये इज़्न-ए-आम है ऐ वाइ'ज़ो आओ वुज़ू कर लो
रिफ़अतुल क़ासमी
कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे
रिफ़अतुल क़ासमी
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