निशां Poetry (page 13)
हम जिसे समझते थे सई-ए-राएगाँ यारो
फ़रीद जावेद
कुछ उन की जफ़ा उन का सितम याद नहीं है
फ़रीद इशरती
बिछड़ते दामनों में अपनी कुछ परछाइयाँ रख दो
फ़राज़ सुल्तानपूरी
हज़ार ढूँडिए उस का निशाँ नहीं मिलता
फ़ानी बदायुनी
ये किस क़यामत की बेकसी है ज़मीं ही अपना न यार मेरा
फ़ानी बदायुनी
क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
फ़ानी बदायुनी
मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही
फ़ानी बदायुनी
ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता
फ़ानी बदायुनी
कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ
फ़ैज़ी
सोचने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
पैरिस
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
लहू का सुराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
क्या करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ुर्शीद-ए-महशर की लौ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़लस्तीनी शोहदा जो परदेस में काम आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला
फ़हीम शनास काज़मी
ज़िंदगी से मुकालिमा
फ़हीम शनास काज़मी
तुम्हारे ब'अद जो बिखरे तो कू-ब-कू हुए हम
फ़हीम शनास काज़मी
लफ़्ज़ का बस है तअ'ल्लुक़ मेरे तेरे दरमियाँ
फ़हीम आज़मी
इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
एज़ाज़ अहमद आज़र
इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
एज़ाज़ अहमद आज़र
ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है
एजाज़ गुल
यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं
एजाज़ गुल
ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था
एजाज़ आज़मी
दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा
एहतिशाम अख्तर
चराग़ दिल का था रौशन बुझा गया पानी
एहतिशाम अख्तर
जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और
एहसान जाफ़री
वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था
दिलावर अली आज़र
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