नज़र Poetry (page 32)
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
असग़र वेलोरी
इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
असग़र गोंडवी
हम उस निगाह-ए-नाज़ को समझे थे नेश्तर
असग़र गोंडवी
हर इक जगह तिरी बर्क़-ए-निगाह दौड़ गई
असग़र गोंडवी
तिरे जल्वों के आगे हिम्मत-ए-शरह-ओ-बयाँ रख दी
असग़र गोंडवी
शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए
असग़र गोंडवी
रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते
असग़र गोंडवी
कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था
असग़र गोंडवी
जान-ए-नशात हुस्न की दुनिया कहें जिसे
असग़र गोंडवी
असरार-ए-इश्क़ है दिल-ए-मुज़्तर लिए हुए
असग़र गोंडवी
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
असग़र गोंडवी
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
असर लखनवी
न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
असर लखनवी
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
असर लखनवी
तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
असद मुल्तानी
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
असद भोपाली
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई
असद भोपाली
यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है
असअ'द बदायुनी
मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में
असअ'द बदायुनी
जज़्ब-ए-निगाह-ए-शोबदा-गर देखते रहे
आरज़ू लखनवी
तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं
आरज़ू लखनवी
मिरी निगाह कहाँ दीद-ए-हुस्न-ए-यार कहाँ
आरज़ू लखनवी
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
आरज़ू लखनवी
जहाँ कि है जुर्म एक निगाह करना
आरज़ू लखनवी
बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे
आरज़ू लखनवी
ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले
अर्शी भोपाली
दर्द के साँचे में ढल कर रह गई
अर्शी भोपाली
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का अल्लाह रे ज़माना
अर्शी भोपाली
मैं ने उसी से हाथ मिलाया था और बस
अरशद महमूद अरशद
ज़िम्मेदारी
अरशद कमाल
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