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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 29 - Darsaal

नज़र Poetry (page 29)

तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है

बहज़ाद लखनवी

तुझ पर मिरी मोहब्बत क़ुर्बान हो न जाए

बहज़ाद लखनवी

मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं

बहज़ाद लखनवी

ख़ुदा को ढूँड रहा था कहीं ख़ुदा न मिला

बहज़ाद लखनवी

इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया

बहज़ाद लखनवी

सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं

बेदम शाह वारसी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे

बेदम शाह वारसी

बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के

बेदम शाह वारसी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

जादू थी सेहर थी बला थी

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया

बासित भोपाली

वारफ़्तगी-ए-इश्क़ न जाए तो क्या करें

बासित भोपाली

उन का बर्बाद-ए-करम कहने के क़ाबिल हो गया

बासित भोपाली

शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया

बासित भोपाली

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

लड़ ही जाए किसी निगार से आँख

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर

ज़फ़र

ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा

बदनाम नज़र

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