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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Darsaal

नज़र Poetry

ऐसा नहीं कि मुँह में हमारे ज़बाँ नहीं

फ़र्रुख़ जाफ़री

मकान ख़ाली है

अज़ीज़ क़ैसी

शबाब आ गया उस पर शबाब से पहले

ए जी जोश

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

फ़लक को फ़िक्र कोई मेहर-ओ-माह तक पहोंचे

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

जीने की है उमीद न मरने की आस है

ज़ुहैर कंजाही

मनकूहा

ज़ुबैर रिज़वी

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

इतना सोचा तुझे कि दुनिया को

ज़िया जालंधरी

तुलूअ'

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

छेड़ी भी जो रस्म-ओ-राह की बात

ज़िया जालंधरी

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

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ज़ीशान साहिल

किसी की देन है लेकिन मिरी ज़रूरत है

ज़ीशान साहिल

गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे

ज़ीशान साहिल

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

'ज़ेब' अब ज़द में जो आ जाए वो दिल हो कि निगाह

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

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