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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 93 - Darsaal

नज़र Poetry (page 93)

दिल के ज़ख़्मों की चुभन दीदा-ए-तर से पूछो

बुशरा हाश्मी

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

ये अदा आप में सरकार कहाँ थी पहले

बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद

संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं

बबल्स होरा सबा

बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने

बबल्स होरा सबा

ज़ौ-बार इसी सम्त हुए शम्स-ओ-क़मर भी

ब्रहमा नन्द जलीस

जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे

बूम मेरठी

रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है

बिस्मिल सईदी

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

बिस्मिल साबरी

निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी

बिस्मिल अज़ीमाबादी

न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी

चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले

बिस्मिल अज़ीमाबादी

साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है

बिस्मिल इलाहाबादी

मिल चुका महफ़िल में अब लुत्फ़-ए-शकेबाई मुझे

बिस्मिल इलाहाबादी

हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम

बिस्मिल आग़ाई

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

बिस्मिल आग़ाई

कितना अजीब शब का ये मंज़र लगा मुझे

बिस्मिल आग़ाई

ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर

बिर्ज लाल रअना

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ

बिर्ज लाल रअना

यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला

बिमल कृष्ण अश्क

क़ासिद तू ख़त को लाया है क्यूँकर खुला हुआ

बिल्क़ीस बेगम

एक आलम है ये हैरानी का जीना कैसा

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैं

बिल्क़ीस ख़ान

सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात

भवेश दिलशाद

न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है

भवेश दिलशाद

कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी

भवेश दिलशाद

बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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