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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 84 - Darsaal

नज़र Poetry (page 84)

संग-ए-दर देख के सर याद आया

फ़ानी बदायुनी

क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते

फ़ानी बदायुनी

क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा

फ़ानी बदायुनी

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

कुछ बस ही न था वर्ना ये इल्ज़ाम न लेते

फ़ानी बदायुनी

दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था

फ़ानी बदायुनी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं

फ़ानी बदायुनी

बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी

फ़ानी बदायुनी

आह अब तक तो बे-असर न हुई

फ़ानी बदायुनी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो ख़ानुमाँ-ख़राब न क्यूँ दर-ब-दर फिरे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है

फ़ना बुलंदशहरी

तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं

फ़ना बुलंदशहरी

तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है

फ़ना बुलंदशहरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

फ़ना बुलंदशहरी

मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से

फ़ना बुलंदशहरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरी निगाह में तेरा जमाल है

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

हर घड़ी पेश-ए-नज़र इश्क़ में क्या क्या न रहा

फ़ना बुलंदशहरी

हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

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