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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 82 - Darsaal

नज़र Poetry (page 82)

शहर का मंज़र हमारे घर के पस-ए-मंज़र में है

फ़ारूक़ शफ़क़

खिड़कियों पर मल्गजे साए से लहराने लगे

फ़ारूक़ शफ़क़

तोहमत-ए-सैर-ए-चमन हम पे लगी क्या न हुआ

फ़ारूक़ नाज़की

मिरे नाख़ुदा न घबरा ये नज़र है अपनी अपनी

फ़ारूक़ बाँसपारी

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर

फ़ारूक़ बख़्शी

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

इस क़दर महव-ए-तसव्वुर हूँ सितमगर तेरा

फ़रोग़ हैदराबादी

वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे

फरीहा नक़वी

जलते मौसम में कोई फ़ारिग़ नज़र आता नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव

फ़ारिग़ बुख़ारी

दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से

फ़रहत शहज़ाद

जितने लोग नज़र आते हैं सब के सब बेगाने हैं

फ़रहत क़ादरी

जब हर नज़र हो ख़ुद ही तजल्ली-नुमा-ए-ग़म

फ़रहत क़ादरी

मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखा

फ़रहत कानपुरी

तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं

फ़रहत कानपुरी

कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो

फ़रहत कानपुरी

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है

फ़रहत कानपुरी

लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़

फ़रहत एहसास

औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर

फ़रहत एहसास

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

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