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Collection: नज़र Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 76 - Darsaal

नज़र Poetry (page 76)

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बन में वीराँ थी नज़र शहर में दिल रोता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे

ग़ुलाम मौला क़लक़

बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या आ के जहाँ में कर गए हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

ग़ुलाम मौला क़लक़

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

मुझे किस तरह से न हो यक़ीं कि उसे ख़िज़ाँ से गुरेज़ है

ग़ुबार भट्टी

ज़मीं की हद अगर कोई नहीं है

गाैस मथरावी

क़ल्ब-ओ-नज़र के सिलसिले मेरी निगाह में रहे

गाैस मथरावी

तुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं

ग़ज़नफ़र

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ग़ज़नफ़र

ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ

ग़ज़नफ़र

अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा

ग़ज़नफ़र

छुपा है कर्ब-ए-मुसलसल हवा के लहजे में

ग़यास अंजुम

इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में

ग़ौसिया ख़ान सबीन

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

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