नज़र Poetry (page 111)
ज़मीं का रिज़्क़ हूँ लेकिन नज़र फ़लक पर है
अनवर सदीद
घुप-अँधेरे में भी उस का जिस्म था चाँदी का शहर
अनवर सदीद
सियाहियों का नगर रौशनी से अट जाए
अनवर सदीद
साँसों में मिल गई तिरी साँसों की बास थी
अनवर सदीद
सफ़ीना ले गए मौजों की गर्म-जोशी में
अनवर सदीद
हद-ए-नज़र से मिरा आसमाँ है पोशीदा
अनवर सदीद
आरज़ू ने जिस की पोरों तक था सहलाया मुझे
अनवर सदीद
तलख़ाबा-ए-ग़म ख़ंदा-जबीं हो के पिए जा
अनवर साबरी
तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए
अनवर साबरी
शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे
अनवर साबरी
हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था
अनवर साबरी
दौर-ए-हाज़िर हो गया है इस क़दर कम-आश्ना
अनवर साबरी
कहीं और ही चलना होगा
अनवर नदीम
शेर-ओ-सुख़न की उस महफ़िल में सब से छोटे हम ही थे
अनवर नदीम
मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है
अनवर मिर्ज़ापुरी
वादा-ए-शाम-ए-फ़र्दा पे ऐ दिल मुझे गर यक़ीं ही न आए तो मैं क्या करूँ
अनवर मिर्ज़ापुरी
मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
किसी सूरत भी नींद आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ
अनवर मिर्ज़ापुरी
ख़्वाब बिखरेंगे तो हम को भी बिखरना होगा
अनवर मीनाई
बड़े सुकून से ख़ुद अपने हम-सरों में रहे
अनवर मीनाई
आज मुझे कुछ लोग मिले हैं पागल से
अनवर मीनाई
'अनवर' मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगी
अनवर मसूद
तय हो गया है मसअला जब इंतिसाब का
अनवर मसूद
पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी
अनवर मसूद
मैं देख भी न सका मेरे गिर्द क्या गया था
अनवर मसूद
जो बारिशों में जले तुंद आँधियों में जले
अनवर मसूद
इशारतों की वो शर्हें वो तज्ज़िया भी गया
अनवर मसूद
बस यूँही इक वहम सा है वाक़िआ ऐसा नहीं
अनवर मसूद
आग
अनवर मक़सूद ज़ाहिदी
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