दुर्लभ Poetry
शाइ'र की इल्तिजा
फ़ज़लुर्रहमान
जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ
बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
ज़ेहरा निगाह
ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था
ज़ेब ग़ौरी
ख़ाक आईना दिखाती है कि पहचान में आ
ज़ेब ग़ौरी
एक इक पल तिरा नायाब भी हो सकता है
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है
ज़फ़र इक़बाल
बीनाई से बाहर कभी अंदर मुझे देखे
ज़फ़र इक़बाल
अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो
ज़फ़र हमीदी
दरिया-ए-मोहब्बत से 'मुहिब' ले ही के छोड़ी
वलीउल्लाह मुहिब
मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास
वलीउल्लाह मुहिब
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
त्रिपुरारि
जचती नहीं कुछ शाही-ओ-इम्लाक नज़र में
तनवीर अंजुम
उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
ताहिर अदीम
हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है
ताहिर अदीम
लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे
शमशाद शाद
नाज़ भला किस बात का तुझ को पास-ए-हुनर जब कुछ भी नहीं
शमशाद शाद
इज़हार-ए-तशक्कुर
शमीम क़ासमी
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
तन्हाई का ग़म ढोएँ और रो रो जी हलकान करें
शाकिर ख़लीक़
बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं
शकील बदायुनी
गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
शकेब जलाली
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
शहरयार
जिस्म की कश्ती में आ
शहरयार
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
शहरयार
हाशिए पर कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ख़्वाब का
शाहिद माहुली
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
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