भूमिका Poetry (page 8)
तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं
सिराज औरंगाबादी
तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
सिराज औरंगाबादी
सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक
सिराज औरंगाबादी
इश्क़ की जो लगन नहीं देखा
सिराज औरंगाबादी
फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
सिराज औरंगाबादी
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
सिराज औरंगाबादी
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
सिकंदर अली वज्द
जहन्नम से पहले जहन्नम
सिदरा सहर इमरान
उसे यक़ीन न आया मिरी कहानी पर
सिद्दीक़ मुजीबी
न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़
सिद्दीक़ मुजीबी
अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे
सिद्दीक़ मुजीबी
जब ध्यान में वो चाँद सा पैकर उतर गया
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक
श्याम सुंदर लाल बर्क़
रास्ते पुर-पेच राही रुस्तगार
शोरिश काश्मीरी
तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा
शोला हस्पानवी
जिस को जाना था कल तक ख़ुदा की तरह
शोला हस्पानवी
अपना ख़ालिक़ ख़ुद ही था मेरा ख़ुदा कोई न था
शोला हस्पानवी
हर लम्हा था सौ साल का टलता भी तो कैसे
शोहरत बुख़ारी
दीवार-ओ-दर पे कृष्ण की लीला के नक़्श हैं
शोभा कुक्कल
काटे हैं दिन हयात के लाचार की तरह
शोभा कुक्कल
हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
पूछते क्या हो जो हाल-ए-शब-ए-तन्हाई था
शिबली नोमानी
लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
ज़ौक़
कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
ज़ौक़
ज़मीं का क़र्ज़
शाज़ तमकनत
अजनबी
शाज़ तमकनत
सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया
शाज़ तमकनत
किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया
शाज़ तमकनत
ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा
शाज़ तमकनत
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