भूमिका Poetry (page 28)
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
अज़्म बहज़ाद
मेरी आहट
अज़ीज़ तमन्नाई
हयूला
अज़ीज़ तमन्नाई
पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में
अज़ीज़ तमन्नाई
हर एक रंग में यूँ डूब कर निखरते रहे
अज़ीज़ तमन्नाई
मैं!
अज़ीज़ क़ैसी
आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला
अज़ीज़ क़ैसी
ग़लत है दिल पे क़ब्ज़ा क्या करेगी बे-ख़ुदी मेरी
अज़ीज़ लखनवी
बताऊँ क्या कि मिरे दिल में क्या है
अज़ीज़ लखनवी
जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
अज़ीज़ हैदराबादी
बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
अज़ीज़ हैदराबादी
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है
अज़ीज़ हामिद मदनी
न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को
अज़ीज़ हामिद मदनी
ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
सुकून-ए-दिल गया नज़रों से सब क़तारे गए
अज़ीम हैदर सय्यद
हैरान हूँ कि आज ये क्या हादिसा हुआ
अज़हर नैयर
वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था
अज़हर इनायती
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
अज़हर इनायती
हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या
अज़हर इनायती
दियों से आग जो लगती रही मकानों को
अज़हर इनायती
अभी बिछड़ा है वो कुछ रोज़ तो याद आएगा
अज़हर इनायती
कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
अज़हर फ़राग़
ये रात आख़िरी लोरी सुनाने वाली है
अज़हर अब्बास
हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई
अज़हर अब्बास
ख़ुद से अब मुझ को जुदा यूँ ही मिरी जाँ रखना
अज़ीज़ परीहारी
रंग कहाँ है साया सा है
अज़ीम कुरेशी
बीच दिलों में उतरा तो है
अज़ीम कुरेशी
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