भूमिका Poetry (page 16)
न आया हमें इश्क़ करना न आया
रियाज़ ख़ैराबादी
मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया
रियाज़ ख़ैराबादी
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
रियाज़ ख़ैराबादी
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के
रियाज़ ख़ैराबादी
सर-ए-राह इक हादिसा हो गया
ऋषि पटियालवी
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
रिन्द लखनवी
ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए
रिन्द लखनवी
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
रिन्द लखनवी
रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह
रिफ़अत सुलतान
लोग उट्ठे हैं तिरी बज़्म से क्या क्या हो कर
रिफ़अत सेठी
तजस्सुस
रिफ़अत सरोश
घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ
रिफ़अत सरोश
दर्द ग़ज़ल में ढलने से कतराता है
रियाज़ मजीद
ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं
रेनू नय्यर
ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं
रेनू नय्यर
दुनिया को हर चीज़ दिखाई जा सकती है
रेनू नय्यर
दुनिया-दारी से ना-वाक़िफ़ कैसा पागल लड़का था
रज़्ज़ाक़ अरशद
कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो सुब्ह-ए-बहाराँ देखो
रज़ी तिर्मिज़ी
हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ
रज़ी मुजतबा
दिन का मलाल शाम की वहशत कहाँ से लाएँ
राज़ी अख्तर शौक़
उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे
रज़ा जौनपुरी
मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं
रज़ा जौनपुरी
मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है
रज़ा हमदानी
चुप हो क्यूँ ऐ पयम्बरान-ए-क़लम
रज़ा हमदानी
मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से
रज़ा अज़ीमाबादी
ख़ून-ए-दिल सर्फ़ कर रहा हूँ 'रविश'
रविश सिद्दीक़ी
कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था
रविश सिद्दीक़ी
इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए
रविश सिद्दीक़ी
न बुतों के न अब ख़ुदा के रहे
रौनक़ टोंकवी
दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत
रौनक़ नईम
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