भूमिका Poetry (page 10)
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
शकेब जलाली
हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर
शकेब जलाली
लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर
शकेब अयाज़
हम तिरी राह में जूँ नक़्श-ए-क़दम बैठे हैं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
जी तरसता है यार की ख़ातिर
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आगे निकल गए वो मुझे देखते हुए
शहज़ाद अहमद
ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
शहज़ाद अहमद
वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो
शहज़ाद अहमद
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया
शहज़ाद अहमद
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
शहज़ाद अहमद
मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं
शहज़ाद अहमद
जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो
शहज़ाद अहमद
जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी
शहज़ाद अहमद
इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं
शहज़ाद अहमद
देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए
शहज़ाद अहमद
अपनी याद में
शहरयार
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
शहरयार
किताब गुमराह कर रही है
शहराम सर्मदी
ऐसा हो कि ना-मौऊद हो
शहराम सर्मदी
ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है
शहराम सर्मदी
नास्तल्जिया
शहनाज़ नबी
सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला
शहनवाज़ ज़ैदी
मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ
शहनवाज़ ज़ैदी
दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था
शहनवाज़ ज़ैदी
आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर
शहनवाज़ ज़ैदी
सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़े कमाल का था
शाहिदा हसन
लम्स आहट के हवाओं के निशाँ कुछ भी नहीं
शाहिदा हसन
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