मिल Poetry (page 21)

इश्क़ की बीमारी है जिन को दिल ही दिल में गलते हैं

रज़ा अज़ीमाबादी

ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

दामन से अपने झाड़ के सहरा-ए-ग़म की धूल

रज़ा अश्क

शाख़ पर फूल खिल गए हैं ना

रवी कुमार

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

गिरफ़्तारी के सब हरबे शिकारी ले के निकला है

रऊफ़ ख़ैर

जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

किन सराबों का मुक़द्दर हुईं आँखें मेरी

राशिद तराज़

ये जो मेरे अंदर फैली ख़ामोशी है

राशिद क़य्यूम अनसर

आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ

राशिद हामिदी

ज़ाद-ए-सफ़र

राशिद आज़र

वही तअल्लुक़-ए-ख़ातिर जो बर्क़-ओ-बाद में है

राशिद आज़र

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

अपनी क़िस्मत के हुए सारे सितारे पत्थर

रशीदुज़्ज़फ़र

मार डालेगी हमें ये ख़ुश-बयानी आप की

रशीद लखनवी

कभी गेसू न बिगड़े क़ातिल के

रशीद लखनवी

जब से सुना दहन तिरे ऐ माह-रू नहीं

रशीद लखनवी

तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिल

रसा चुग़ताई

तेरे आने का इंतिज़ार रहा

रसा चुग़ताई

हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है

रसा चुग़ताई

सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से

राना अकबराबादी

मोहब्बत हासिल-ए-दुनिया-ओ-दीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दीवाना कर के मुझ को तमाशा किया बहुत

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रक्खा गया

रख़्शंदा नवेद

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रखा गया

रख़्शंदा नवेद

कोई ख़्वाब ख़्वाब सा फ़ासला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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