मिल Poetry (page 20)

कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

सबा अकबराबादी

जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

तो मिल भी जाए तो फिर भी तुझे तलाश करूँ

रूही कंजाही

जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है

रियाज़ लतीफ़

नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से

रियाज़ ख़ैराबादी

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

मैं उठा रक्खूँ न कुछ इन के लिए

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई पूछे न हम से क्या हुआ दिल

रियाज़ ख़ैराबादी

जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश

रियाज़ ख़ैराबादी

बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते

रियाज़ ख़ैराबादी

आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ

रिन्द लखनवी

आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा

रिन्द लखनवी

हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम

रिफ़अत सुलतान

बहारों को चमन याद आ गया है

रिफ़अत सुलतान

रक़्स

रिफ़अत नाहीद

किसी भी तौर तबीअ'त कहाँ सँभलने की

रियाज़ मजीद

जो सोचता हूँ अगर वो हवा से कह जाऊँ

रियाज़ मजीद

जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा

रियाज़ मजीद

बदल सका न जुदाई के ग़म उठा कर भी

रियाज़ मजीद

तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं

रेहाना रूही

जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए

रेहाना रूही

दिल को रह रह के ये अंदेशे डराने लग जाएँ

रेहाना रूही

ताज़ियत की खोखली है रस्म जारी आज-कल

रेहान अल्वी

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

वो आँसू जो हँस हँस के हम ने पिए हैं

रज़ा लखनवी

कुछ तो हासिल हो गया इरफ़ान-ए-मय-ख़ाना मुझे

रज़ा जौनपुरी

वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ

रज़ा अज़ीमाबादी

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