मिल Poetry (page 15)
कभी भूल कर भी न बात की मुझे दिल से ऐसा भुला दिया
शबाब
नींद से आँख वो मिल कर जागे
शायर लखनवी
ख़्वाब से आँख वो मल कर जागे
शायर लखनवी
मुंतशिर जब ज़ेहन में लफ़्ज़ों का शीराज़ा हुआ
सीन शीन आलम
खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान
सीमाब ज़फ़र
आँगन से ही ख़ुशी के वो लम्हे पलट गए
सीमाब सुल्तानपुरी
परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
सीमाब अकबराबादी
ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
सीमाब अकबराबादी
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
सीमाब अकबराबादी
ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
सीमाब अकबराबादी
बदन से रूह रुख़्सत हो रही है
सीमाब अकबराबादी
अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला
सीमाब अकबराबादी
चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा
सीमा शर्मा मेरठी
आसमाँ भी पुकारता है मुझे
सीमा शर्मा मेरठी
सुर्ख़ सुनहरी सब्ज़ और धानी होती है
सीमा नक़वी
एक बस तू नहीं मिलता है मुझे खोने को
सीमा नक़वी
जिगर के ख़ून से रौशन गो ये चराग़ रहा
सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी
किसी को कुछ नहीं मिलता है आरज़ू के बग़ैर
सय्यद ज़िया अल्वी
दिल का दिलबर जब से दिल की धड़कन होने वाला है
सय्यद ज़िया अल्वी
दुनिया ने सच को झूट कहा कुछ नहीं हुआ
सय्यद सफ़ी हसन
तो क्या
सय्यद अयाज़ महमूद
अजब ही हाल था आवाज़ का तो
सावन शुक्ला
फूटे मन से बोल, लगा ये ज़िंदा हूँ मैं
सौरभ शेखर
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
मोहम्मद रफ़ी सौदा
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम
मोहम्मद रफ़ी सौदा
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
मोहम्मद रफ़ी सौदा
आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
मोहम्मद रफ़ी सौदा
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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