मिल Poetry (page 14)

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

इक न आने वाले का इंतिज़ार करते हैं

शाहिद इश्क़ी

दिए हैं रंज सारे आगही ने

शाहिद इश्क़ी

तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ

शाह नसीर

सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया

शाह नसीर

बादा-कशी के सिखलाते हैं क्या ही क़रीने सावन-भादों

शाह नसीर

मेहमाँ है कोई दम का ज़माना शबाब का

शाग़िल क़ादरी

हम ज़मीन-ज़ादों को आसमाँ बना जाना

शफ़ीक़ सलीमी

गुल-ए-ख़ुश-नुमा के लिबास में कि शुआ-ए-नूर में ढल के आ

शायर फतहपुरी

कर के सागर ने किनारे मुस्तरद

शादाब उल्फ़त

तस्वीर मिरी है अक्स तिरा तू और नहीं मैं और नहीं

शाद लखनवी

शर्तें जो बंदगी में लगाना रवा हुआ

शाद लखनवी

मिरी बे-रिश्ता-दिली से उसे मज़ा मिल जाए

शाद लखनवी

जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे

शाद लखनवी

ग़ैरों में हिना वो मल रहा है

शाद लखनवी

गर जुनूँ कर मुझे पाबंद-ए-सलासिल जाता

शाद लखनवी

देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा

शाद लखनवी

तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सही

शाद अज़ीमाबादी

ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम

शाद अज़ीमाबादी

क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा

शाद अज़ीमाबादी

ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

शबनम शकील

वहाँ भी ज़हर-ज़बाँ काम कर गया होगा

शबनम शकील

उन की शर्मिंदा-ए-एहसान सी हो जाती है

शबनम शकील

तुम से रुख़्सत-तलब है मिल जाओ

शबनम शकील

सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं

शबनम शकील

बात ईमा-ओ-इशारत से बढ़ी आप ही आप

शबनम शकील

नज़्म

शबनम अशाई

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

इक महकते गुलाब जैसा है

शबाना यूसुफ़

ले के बे-शक हाथ में ख़ंजर चलो

शबाब ललित

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