मिल Poetry (page 13)

छोड़ कर वो हम को तन्हा किस जहाँ में जा बसा

शहज़ाद हुसैन साइल

मंज़िल पे जा के ख़ाक उड़ाने से फ़ाएदा

शहज़ाद अहमद

अगर दो दिल कहीं भी मिल गए हैं

शहज़ाद अहमद

ये किस ग़म से अक़ीदत हो गई है

शहज़ाद अहमद

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने

शहज़ाद अहमद

लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

शहज़ाद अहमद

बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर

शहज़ाद अहमद

तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी

शहरयार

कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल

शहरयार

जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है

शहरयार

आदाब ज़िंदगी से बहुत दूर हो गया

शहूद आलम आफ़ाक़ी

मुन्तज़िम

शहनाज़ नबी

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

उलझा उस की दीद में

शहनवाज़ ज़ैदी

सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के

शहनवाज़ ज़ैदी

आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर

शहनवाज़ ज़ैदी

जंगलों में बारिशें हैं दूर तक

शाहिदा तबस्सुम

कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली

शाहिदा हसन

बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है

शाहिद ज़की

बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है

शाहिद ज़की

ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा

शाहिद मीर

ज़मीं तश्कील दे लेते फ़लक ता'मीर कर लेते

शाहिद लतीफ़

लोग हैरान हैं हम क्यूँ ये किया करते हैं

शाहिद लतीफ़

आज भी जिस की है उम्मीद वो कल आए हुए

शाहिद लतीफ़

फूलों से सज गई कहीं सब्ज़ा पहन लिया

शाहिद जमाल

शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले

शाहिद इश्क़ी

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

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