मिल Poetry (page 12)

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे

शकील बदायुनी

बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया

शकील बदायुनी

आँख उन को देखती है नज़ारा किए बग़ैर

शकील बदायुनी

आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया

शकील बदायुनी

कच्चे रंगों का मौसम

शकील आज़मी

हुआ न ख़त्म अज़ाबों का सिलसिला अब तक

शकील आज़मी

अपनी हस्ती को मिटा दूँ तिरे जैसा हो जाऊँ

शकील आज़मी

रात के पिछले पहर

शकेब जलाली

सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ

शकेब जलाली

मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा

शकेब जलाली

मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में

शकेब जलाली

क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है

शकेब जलाली

दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ

शकेब जलाली

दामन-ए-ज़ब्त को अश्कों में भिगो लेता हूँ

शकेब बनारसी

बे-आब-ओ-बे-ग्याह हुआ उस को छोड़ कर

शकेब अयाज़

सुन ली रामायन की जब पूरी कथा

शाइस्ता यूसुफ़

कुछ भी हो तक़दीर का लिक्खा बदल

शाइस्ता सहर

शब-ए-तन्हाई

शाइस्ता मुफ़्ती

वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तू जो कहता है बोलता क्या है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

क्या हुआ गर शैख़ यारो हाजी-उल-हरमैन है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब से तुम्हारी आँखें आलम को भाइयाँ हैं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

बुलंदी की पैमाइश

शहज़ाद नय्यर

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