मिल Poetry (page 10)

जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है

ज़ौक़

दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से

ज़ौक़

आँखें मिरी तलवों से वो मिल जाए तो अच्छा

ज़ौक़

रंजिश तिरी हर दम की गवारा न करेंगे

शैख़ अली बख़्श बीमार

बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए

शैख़ अली बख़्श बीमार

चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ

शहपर रसूल

कहूँ मैं क्या कि क्या दर्द-ए-निहाँ है

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

पत्तियाँ हो गईं हरी देखो

शीन काफ़ निज़ाम

छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सौत-ओ-सदा ले जाएगा

शीन काफ़ निज़ाम

किताब-ए-हुस्न है तू मिल खुली किताब की तरह

शाज़ तमकनत

वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए

शाज़ तमकनत

शिकन शिकन तिरी यादें हैं मेरे बिस्तर की

शाज़ तमकनत

न महफ़िल ऐसी होती है न ख़ल्वत ऐसी होती है

शाज़ तमकनत

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब

शायान क़ुरैशी

ज़ाहिरन ये बुत तो हैं नाज़ुक गुल-ए-तर की तरह

शौक़ बहराइची

शैख़ ओ बरहमन दोनों हैं बर-हक़ दोनों का हर काम मुनासिब

शौक़ बहराइची

शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ

शौकत परदेसी

नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है

शौकत परदेसी

मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो

शौकत परदेसी

आइना देखूँ मगर क्या देखूँ

शर्मा तासीर

आओ गले मिल कर ये देखें

शारिक़ कैफ़ी

किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है

शारिक़ कैफ़ी

जनाज़े में तो आओगे न मेरे

शारिक़ कैफ़ी

अचानक भीड़ का ख़ामोश हो जाना

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

दुनिया शायद भूल रही है

शारिक़ कैफ़ी

सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर किसे जहान में है

शारिब मौरान्वी

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

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